Saturday, December 18, 2010

क्यों होने लगता है सम्मोहन

क्यों होने लगता है सम्मोहन 
और मुझे शक्तिहीन कर जाता है 
इतना शक्तिहीन कि
तुम्हारे विरोध के लिए भी 
तुमसे ही भीख मांगनी पड़ती है |

क्यों छला जाता हु मै निरंतर 
सिर्फ अभिव्यक्ति के लिए इतना 
वो भी ऐसी जिसे मै कह ना सकूँ  अपना |

वाह गुरु क्या खूब लत लगायी है प्रार्थना की
क्यों मुझे पवित्र भिखारी  बनाया 
तुम तो मेरे परिचित थे 
फिर भी मैंने धोखा खाया |

तुमको किसने अधिकार दिया 
जब चाहो जगा दो किसी को नींद से 
तुम क्या जानो 
होता है कष्ट कितना टूटने पर कच्ची नींद के ;

उचटी है नींद , मन विरक्त ,भाव शुन्य |

और मै इतना कठोर नहीं तेरी तरह 
पर सांगत का असर तो आता ही है
देखना पड़ता है बड़े गौर से 
पूरे अनुभव से 
की कौन नींद पूरी कर चूका लगभग 
और जागने को है ,
ताकि कष्ट न हो जागने वाले को |
अरे कभी खुद सो कर देख गरीब 
नींद में कित्न्ना सुख है ;
पर तुम क्या जानो 
तुमने तो सदा शिशुओं की पलकें चीरी है ;

अरे आँखों को जवान तो होने दे, 
शायद तब बात कुछ और हो |

Friday, March 26, 2010

प्रार्थना


बनफूल की सुवास पी 
मदमस्त समीर
कितना अधीर 
चढ़ती खुमारी 
चढ़ती ही जाती 
लहराता मादकता में यायावर 
सहलाता ठंडी श्वासों से 
अंग उमंग 
और तभी पुलकन घटती ....

टुकुर टुकुर निहारते तारे ये सारे 
गा रही नींद कोमल स्वर में
घट रहे स्वप्न कितने मधुर 
मीठे मीठे , जागे जागे 
ज्यो खनके घुंघरुओं  की छुन छुन 
बेबस ये गुन गुन .....
गा रहे भाव गीत प्यारे
छुप छुप कर झींगुर , कितने सारे...

है अब अद्भुत आलोक, नृत्य में मृत्यु का लोक 
कैसा सुखद एहसास है , अब वह मेरे पास है 
आंदोलित अश्रु  सरिता , घट रहा मधुमास 
शुन्य जन्मा गर्भ में , अप्रयास .......

गा रहे श्रंगार  , भाषा संग विचार 
झरी .... निर्झर चेतना 
खिल उठी प्रार्थना ,
आनंद का कलरव,
आनंद की फुहार
निर्विकार ....
निर्विकार.....