और मुझे शक्तिहीन कर जाता है
इतना शक्तिहीन कि
तुम्हारे विरोध के लिए भी
तुमसे ही भीख मांगनी पड़ती है |
क्यों छला जाता हु मै निरंतर
सिर्फ अभिव्यक्ति के लिए इतना
वो भी ऐसी जिसे मै कह ना सकूँ अपना |
वाह गुरु क्या खूब लत लगायी है प्रार्थना की
क्यों मुझे पवित्र भिखारी बनाया
तुम तो मेरे परिचित थे
फिर भी मैंने धोखा खाया |
तुमको किसने अधिकार दिया
जब चाहो जगा दो किसी को नींद से
तुम क्या जानो
होता है कष्ट कितना टूटने पर कच्ची नींद के ;
उचटी है नींद , मन विरक्त ,भाव शुन्य |
और मै इतना कठोर नहीं तेरी तरह
पर सांगत का असर तो आता ही है
देखना पड़ता है बड़े गौर से
पूरे अनुभव से
की कौन नींद पूरी कर चूका लगभग
और जागने को है ,
ताकि कष्ट न हो जागने वाले को |
अरे कभी खुद सो कर देख गरीब
नींद में कित्न्ना सुख है ;
पर तुम क्या जानो
तुमने तो सदा शिशुओं की पलकें चीरी है ;
अरे आँखों को जवान तो होने दे,
शायद तब बात कुछ और हो |